Sunday, February 19, 2012

Naman Mein Man- For Mother


नमन में मन

आज फिर
हरसिंगार झरते हैं
माँ के आशीष रूप धरते हैं
पुलक पुलक 
उठता है मन
शाश्वत यह कैसा बंधन
नमन में झुकता है मन
नमन में मन

थिरकते हैं
साँझ की गहराइयों में
तुम्हारी पायलों के स्वर
नज़र आता है चेहरा
सुकोमल अप्सरा सा
उठाकर बाँह
उँगलियों से दिखाती राह
सितारों से भरा आँगन
नमन में मन

लहरता है
सुहानी सी उषा में
तुम्हारी रेशमी आँचल
हवा के संग
बुन रहा वात्सल्य का कंबल
सुबह की घाटियों में
प्यार का संबल
सुरीली बीन सा मौसम
नमन में मन

बसी हो माँ
समय के हर सफ़र में
सुबह सी शाम सी
दिन में बिखरती रौशनी सी
दिशाओं में
मधुर मकरंद सी
दूर हो फिर भी
महक उठता है जीवन
नमन में मन

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